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श्री महर्षि जनार्दन गिरी महाराज
महर्षि जनार्दन गिरी जी महाराज की जन्म स्थली नागौर है। अपनी योग्यता और तपस्या के बल पर उन्नति करते हुवे ऋषिकेश में कैलाश आश्रम के द्वितीय पीठाधीश्वर बने। आपका जन्म नागौर के तेलीवाड़ा में पुष्करणा ब्राह्मण बोहरा जाति में हुआ। आपका जन्म का नाम जेठा राम था। आपके पिता का नाम श्री बैजनाथ था। इनकी जन्म तिथि के बारे में कोई साक्ष्य प्राप्त नही हुआ। नागौर के ज्योतिष सम्राट राजा साहब श्री लक्ष्मण दास जी निरंजनी द्वारा इन्होंने संस्कृत व ज्योतिष की शिक्षा प्राप्त की। राजा साहब ने भविष्यवाणी कर दी कि वह एक दिन महान सन्त बन कर नागौर का नाम व कीर्ति फैलाएगा। श्री बीज राज जी गुरोसा ज्योतिषी ने इन्हें तुरन्त गायत्री पुरश्चरण करने की सलाह दी। उन्होंने तुरंत नागौर में प्रताप सागर तालाब पर स्थित श्री बड़लेश्वर महादेव बगीची में जाकर लगातार गायत्री के तीन पुरश्चरण किये। वे अखण्ड ब्रह्मचारी थे। इन्होंने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की दीक्षा प्राप्त की। इसी बगीची में इन्होंने तपस्या के समय कई चमत्कार भी दिखाए।
एक बार गुरु पूर्णिमा के दिन भण्डारा का आयोजन किया गया। देव योग से एक मुस्लिम फकीर अपना खप्पर लेकर आया और प्रसादी की याचना की, स्वामी जी ने अपने शिष्य को खीर का पात्र देकर भेजा। उस शिष्य ने कई पात्र लाकर खीर डाली परन्तु पात्र खप्पर खाली का खाली। जब स्वामी जी को इस बात की जानकारी दी तो वे स्वयं खीर का पात्र लेकर गए और खप्पर में खीर डालने लगे। काफी समय बीत जाने पर भी न तो खप्पर भरा और न ही स्वामी जी के हाथ का खीर का पात्र ही खाली हुआ। आखिर फकीर स्वामी जी के चमत्कार के आगे नतमस्तक होकर उनके चरणों पर गिर पड़ा। दो सिद्धों का ये चमत्कार जन चर्चा का विषय बन गया।
एक बार इसी बगीची में बड़ा यज्ञ हवन चल रहा था, रात्रि हो चुकी थी। इधर होम के लिए घी समाप्त हो गया। बाजार में दुकानें बन्द हो चुकी थी। लोग घबरा गए। स्वामी जी ने शिष्यों को कहा कि तालाब से 2 डिब्बे पानी के भर लाओ और हवन चालू रखो। कल प्रातः बाजार से 2 घी के डिब्बे लाकर पुनः तालाब में डालकर उधार चुका देना। पानी के दोनों डिब्बे घी से भरे मिले और उसी से हवन पूर्ण किया। लोग स्वामी जी के चमत्कार को देखते ही रह गए।
तत्पश्चात आप नागौर से चलकर काशी पहुँचे, वहाँ विभिन्न शास्त्रों का गहन अध्ययन कर पूर्ण विध्वता प्राप्त की। वहाँ से ज्ञान प्राप्त करके सीधे ऋषिकेश, कैलाश आश्रम पहुंचे। वहाँ कैलाश आश्रम के संस्थापक व प्रथम पीठाधीश्वर स्वामी धनराज गिरी जी से दीक्षा ली एवम सन्यास ग्रहण कर प्रस्थानमयी एवम वेदान्त संबंधी समस्त ग्रंथों का विधिवत अध्यययन किया। यहीं से ये जेठानन्द से स्वामी जनार्दन गिरी बने। विक्रम संवत 1967 फाल्गुन कृष्ण एकादशी को महामंडलेश्वर धनराज गिरी के ब्रह्मलीन हो जाने पर उस रिक्त पद पर किसे नियुक्त किया जाय अतः उनके सैकड़ों यति शिष्यों में से सर्वाधिक योग्य स्वामी जनार्दन गिरी को सभी सन्तों ने ब्रह्मविद्यापीठ कैलाश आश्रम का पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेशवर आभिविक्त किया। वे वहाँ ब्रह्मविद्या के प्रचार कार्य में संलग्न हो गए।
स्वामी जनार्दन गिरी का आचार्यत्व काल कैलाशपीठ का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। उनकी छत्रछाया में अनेक दिव्य विभूतियों का प्रादुर्भाव हुआ। अनेक सन्तों ने आपसे ब्रह्म विद्या एवम सन्यास शिक्षा प्राप्त की। महामंडलेश्वर स्वामी विष्णु नृसिंह गिरी जी जैसे दक्षिण मूर्ति मठ के प्रकाण्ड विद्धवान संस्थापक महामंडलेश्वर स्वामी महादेवानन्द गिरी जैसे प्रतिभावान वीतराग सन्त और हिमालय सम्राट स्वामी तपोवन जी महाराज जैसे तपः पूत सन्यासी आपकी ही देन है। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चिन्मय मिशन के संस्थापक श्री चिन्मयानन्द सरस्वती जैसे सन्त आध्यात्म साधना कर प्रसिद्ध हो गए।
एक बार आश्रम के व्यवस्थापक एवम पीठाधीश्वर के बीच सामंजस्य न होने के कारण उन्होंने पद त्याग कर दिया। पदत्याग के समाचार फैलते ही पंचायतें निरंजनी अखाड़े के महंत इनको हाथी पर बैठाकर हरिद्वार ले गए और निरंजनी अखाड़े के आचार्य पद पर अभिषिक्त किया। कैलाश आश्रम की दुर्दशा होने के फलस्वरूप तीन साल पश्चात कैलाश आश्रम के समस्त सन्त स्वामी जी के शरणागत हुवे क्षमा याचना की। उन्होंने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया अतः उन्हें कैलाश आश्रम में पुनः पीठाधीश्वर पद पर अभिसिक्त किया। उनके लिए न तो पद त्याग पर विषाद हुआ था और न ही पुनः पद प्राप्ति पर हर्ष ही। न काहू से दोस्ती न काहू से वैर। प्रथम और द्वितीय समय मिलाकर 13 वर्षों तक आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी जनार्दन गिरी जी ने कैलाश आश्रम के पीठाचार्य पदभार को सम्हाला। वैशाख शुक्ल 6 विक्रम संवत 1985 में आप ब्रह्मलीन हो गए।
उनकी स्मृति में आज भी नागौर शहर मे 1983 में स्थापित किया गया श्री महर्षि जनार्दन गिरी पुष्टिकर माध्यमिक विद्यालय संचालित हो रहा है।